इसलिए संभवतः संस्कृतियों की सहोपस्थिति हमारे लिए जितनी सहज है उतनी ही सहज भाषाओं की सहोपस्थिति भी रही है।
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इसलिए संभवतः संस्कृतियों की सहोपस्थिति हमारे लिए जितनी सहज है उतनी ही सहज भाषाओं की सहोपस्थिति भी रही है।
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दूसरी बात यह है कि हमारे यहाँ भाषाओं की सहोपस्थिति साहित्य की रचनात्मकता का ही एक हिस्सा रहा है।
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विकराल रावण की मूर्ति एवं पवित्र पंडित जी की छवि की सहोपस्थिति (मोन्टाज) में अंत होता फिल्म का आरम्भिक अंश मानो प्रस्तावना या विधान के रूप में आता है ।