ने सुअरों की पूंछ काटे जाने पर उन्हें होने वाले दर्द और “खतना किये जाने के दौरान नर नवजात मानवों द्वारा अनुभव किये जाने वाले दर्द के प्रति हमारी सांस्कृतिक उदासीनता” के बीच एक साम्यानुमान विकसित करते हुए यह तर्क दिया कि संभवतः पशुओं (मनुष्यों सहित) द्वारा अनुभव किये जाने वाले दर्द के प्रति मानव दृष्टिकोण प्रजातिवाद (
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(2003) ने सुअरों की पूंछ काटे जाने पर उन्हें होने वाले दर्द और “खतना किये जाने के दौरान नर नवजात मानवों द्वारा अनुभव किये जाने वाले दर्द के प्रति हमारी सांस्कृतिक उदासीनता” के बीच एक साम्यानुमान विकसित करते हुए यह तर्क दिया कि संभवतः पशुओं (मनुष्यों सहित) द्वारा अनुभव किये जाने वाले दर्द के प्रति मानव दृष्टिकोण प्रजातिवाद (speciesism) पर आधारित नही होता.