अतीत के इस गीतात्मक, भक्तिपरक, वीररसपूर्ण या सूक्तिपूर्ण साहित्य ने क्लासिकों की दो समानांतर श्रृंखलाएं पैदा की: दरबारों के परंपरागत क्लासिक जिनके लेखकों के नाम भली भाँति सुरक्षित हैं और जनकवियों और सूफियों की लोक परंपरा जो चंद अपवादों को छोड़कर ज्यादातर गुमनाम ही रहे हैं.