की भावना कर्ता या केवल निमित्त कारण के रूप में भी सृष्टिवर्णन में
4.
और यह तर्क भी दिया जाता रहा है कि जेव ला ग्रांडे एक काल्पनिक अवधारणा थी, जो कि सोलहवीं सदी की सृष्टिवर्णन की धारणाओं को प्रतिबिम्बित करती है.
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[57] और यह तर्क भी दिया जाता रहा है कि जेव ला ग्रांडे एक काल्पनिक अवधारणा थी, जो कि सोलहवीं सदी की सृष्टिवर्णन की धारणाओं को प्रतिबिम्बित करती है।
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[57] और यह तर्क भी दिया जाता रहा है कि जेव ला ग्रांडे एक काल्पनिक अवधारणा थी, जो कि सोलहवीं सदी की सृष्टिवर्णन की धारणाओं को प्रतिबिम्बित करती है.
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[57] और यह तर्क भी दिया जाता रहा है कि जेव ला ग्रांडे एक काल्पनिक अवधारणा थी, जो कि सोलहवीं सदी की सृष्टिवर्णन की धारणाओं को प्रतिबिम्बित करती है।
8.
तदनन्तर सृष्टिवर्णन, कल्प, मन्वन्तर तथा युगों की काल-गणना, वराहावतारकी कथा, शिवपार्वती-चरित्र, योगशास्त्र, वामनवतार की कथा, सूर्य-चन्द्रवंशवर्णन, अनुसूया की संतति-वर्णन तथा यदुवंश के वर्णन में भगवान् श्रीकृष्ण के मंगल मय चरित्र का सुन्दर निरूपण किया गया है।
9.
6वीं सदी में अलेक्जेंड्रिया में निवास करने वाले एक व्यापारी और भारत की यात्रा करने वाले एवं सृष्टिवर्णन (कॉस्मोग्राफी) पर कई रचनाओं का लेखन करने वाले कॉस्मस इंडिकोप्ल्यूस्ट्स इकसिंगे का एक चित्र प्रस्तुत करते हैं जिसके बारे में वे कहते हैं कि उन्होंने इसे अपनी आंखों से देखकर नहीं बल्कि इथियोपिया के राजा के महल में रखे हुए पीतल की वस्तु में अंकित इसके चार चित्रों के आधार पर इसे चित्रित किया था.
10.
6वीं सदी में अलेक्जेंड्रिया में निवास करने वाले एक व्यापारी और भारत की यात्रा करने वाले एवं सृष्टिवर्णन (कॉस्मोग्राफी) पर कई रचनाओं का लेखन करने वाले कॉस्मस इंडिकोप्ल्यूस्ट्स इकसिंगे का एक चित्र प्रस्तुत करते हैं जिसके बारे में वे कहते हैं कि उन्होंने इसे अपनी आंखों से देखकर नहीं बल्कि इथियोपिया के राजा के महल में रखे हुए पीतल की वस्तु में अंकित इसके चार चित्रों के आधार पर इसे चित्रित किया था.