पत्ती, सेनामुख, गुल्म तथा गण के नायक अर्धरथी हुआ करते थे.
7.
त्रयश्च तुरगास्तज्झै: पत्तिरित्यभिधीयते॥ इस पत्ति की तिगुनी संख्या को विद्वान पुरुष ' सेनामुख ' कहते हैं।
8.
इस फिल्म से पहली बार कट्र मानवतावादी दृष्टिकोण रखने वाले संगठनों के बीच में भी (सेनामुख / आगे रहने की प्रवृत्ति) होने की अशिष्ट प्रवृत्ति का पता चलता है।
9.
अक्षौहिणी का अर्थ सुत पुत्र वैशंपायन बोले ‘‘ एक रथ, एक हाथी, पांच पैदल मनुष्य और तीन रथों को ‘ पत्ति ‘ कहा जाता हे, विद्वान तीन पत्तियों का एक सेनामुख और तीन सेनामुखों का एक गुल्म कहते हैं.
परिभाषा
सेना में सबसे आगे रहनेवाले सैनिकों का दल:"मोहरे में कुशल सैनिक होते हैं" पर्याय: मोहरा, हरावल, सेनाग्र, अरावल,