यहाँ पर आकर मामला दो पृथक् मानसिकता का बनता है जो स्वयं शासक और शासिता, स्वामी और सेविका (सेविता) में परिणित हो जाता है।
4.
रियाँ जब विभुमयी होकर दिशाओं में कुहक-सा पूरतीं नव चँवर लहराता चतुर्दिश घूमता पवमान चंचल मेघ-मालायें उढ़ायें बिजलियों से खचित आँचल, * ताप हरने के लिये भर-भर अँजलियाँ अर्घ्य का जल रजतवर्णी राशि हिम की कहीं,, मरुथल कहीं वनथल, सप्त द्वीप सुशोभिता, पयधार मय पर्वत अटल दृढ़ घाटियाँ,मैदान, सर, सरिता, सहित गिरि-शृंखला धर, * खग-मृगों से सेविता,गुँजित गगन रंजित दिशांगन, जन्म लेने जहाँ लालायित रंहे हरदम अमरगण.