बाजों का स्वरसाम्य अथवा मेल ही संगीत की मोहकता का कारण है।
2.
चराग़ों, ऑंखों, गुलाबों, दराज़ों, आशियानों, किनारों, प्यालों में स्वरसाम्य 'ओं' पर स्थापित हो रहा है और ऐसे में शायर को यह अधिकार है कि वह मत्ले में काफि़यास्वरूप केवल स्वरसाम्य ले (जैसा कि उपर लिये गये गोविन्द गुलशन जी के मत्ले की ग़ज़ल में लिया गया है)।
3.
चराग़ों, ऑंखों, गुलाबों, दराज़ों, आशियानों, किनारों, प्यालों में स्वरसाम्य 'ओं' पर स्थापित हो रहा है और ऐसे में शायर को यह अधिकार है कि वह मत्ले में काफि़यास्वरूप केवल स्वरसाम्य ले (जैसा कि उपर लिये गये गोविन्द गुलशन जी के मत्ले की ग़ज़ल में लिया गया है)।