इसअनुभव ने अनेक देशों स्वर्णमान छोड़ने के लिए प्रेरित किया.
2.
इस प्रकार स्वर्णमान देश में कभी स्फीति और कभीअवस्फीति रहा करती है.
3.
स्वर्णमान का एक प्रमुख लाभ यह था कि उसमें स्वर्णमान अपनानेवाले सभी देशों में विनिमय स्थिति संतुलित रहती थी.
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स्वर्णमान का एक प्रमुख लाभ यह था कि उसमें स्वर्णमान अपनानेवाले सभी देशों में विनिमय स्थिति संतुलित रहती थी.
5.
इसका कारण यह था कि स्वर्णमान केनियमों के अनुसार विनिमय असंतुलन स्थिति में देश के अंदर मौद्रिकपरिवर्तन आवश्यक थे.
6.
यदि कभी विनिमयस्थिति में अनुकरण प्रतिकूल असंतुलन उत्पन्न होता था तो स्वर्णमान कीस्वचापित कार्यप्रणाली असंतुलन को बहुत शीघ्र दूर कर देती थी.
7.
कालान्तर में वैश्विक स्तर पर सब देशों ने बैंकनोटो को जारी करने की स्वर्णमान व्यवस्था को नकारते हुए बैंकनोटों को जारी किया।
8.
आज स्वर्णमान जैसी कोई बात नहीं है, फिर भी दुनिया भर में बड़े पैमाने पर बिना किसी दिक्कत भुगतान किया जा सकता है।
9.
स्वर्णमान कीसमाप्ति के बाद मौद्रिक नीति प्रधान उद्देश्य आंतरिक मूल्य स्थिरता मानाजाने लगा और विनिमय स्थिरता साख नीति का दूसरा महत्वपूर्ण उद्देश्य होगया है.
10.
आज स्वर्णमान जैसी कोई बात नहीं है, फिर भी दुनिया भर में बड़े पैमाने पर बिना किसी दिक्कत भुगतान किया जा सकता है।