6. अद्वितीय तपस्या और अप्रेरित भक्ति: जब हम द्वारका आए तो वहाँ कुछ भी नहीं था।
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उक्त गोष्ठी की यह एक लाक्षणिक और अप्रेरित घटना थी कि एक साहित्य प्रेमी ने हरनोट की कहानियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वे मूलत:
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कुल दो तीन हफ़्तों तक उन्होंने बिना रुके, अप्रेरित ऐसा ही किया, और फिर चौथे हफ्ते एक व्यक्ति हमसे मिलने आते हैं और कहते हैं, ” आप जानते हैं महाराज, मेरी माँ का एक ट्रस्ट है।
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उक्त गोष्ठी की यह एक लाक्षणिक और अप्रेरित घटना थी कि एक साहित्य प्रेमी ने हरनोट की कहानियों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि वे मूलत: एक कवि हैं और साहित्य अकादमी के कार्यक्रमों में आते रहते हैं।