स्वभावतः अपने पूर्वसंस्कारों (लौकिक संस्-~ कृत के संस्कारों) के वश हो कर कुछ का कुछ अर्थकर डालते हैं.
2.
दिमाग में ऐसा गड्डमड्ड होता है कि आखिर को मैं फिर से सवाल पर लौट आता हूं कि आखिर किसे कहोगे क्रूरता? लेकिन इस दौरान जो कुछ चित्र बनते हैं, दृश्य उपस्थित होते हैं वे अर्थकर लगते हैं।