सारे इन्द्रिय-बोध कुंठित हो गये हैं, शरीर विल्कुल सुन्न ।
2.
उसमें मनुष्य का इन्द्रिय-बोध, उसकी भावनाएँ आन्तरिक प्रेरणाएँ भी व्यंजित होती हैं.
3.
सभ्यता मनुष्यके इन्द्रिय-बोध को परिष्क़त रुप देती है. यह परिष्कारकि क्रिया भी धीरे-धीरे होतीहै.
4.
क्योंकिसाहित्य का सम्बन्ध मनुष्य के इन्द्रिय-बोध से है. समाज-व्यवस्थाके बदलने केसाथ ही मनुष्य के इन्द्रिय-बोध में परिवर्तन नहींहोता.
5.
क्योंकिसाहित्य का सम्बन्ध मनुष्य के इन्द्रिय-बोध से है. समाज-व्यवस्थाके बदलने केसाथ ही मनुष्य के इन्द्रिय-बोध में परिवर्तन नहींहोता.
6.
उनका मानना था, ‘ साहित्य भी शुद्ध विचारधारा का रूप नहीं है, उसका भावों और इन्द्रिय-बोध से घनिष्ठ संबंध है।
7.
भावार्थ: हे कुंतीपुत्र! सुख-दुःख को देने वाले विषयों के क्षणिक संयोग तो केवल इन्द्रिय-बोध से उत्पन्न होने वाले सर्दी तथा गर्मी की ऋतुओं के समान आने-जाने वाले हैं, इसलिए हे भरतवंशी! तू अविचल भाव से उनको सहन करने का प्रयत्न कर।
8.
यहां अशोक कुमार पाण्डेय ने कविता में संश्लिष्टता का जो प्रमाण दिया है, उसमें जनवाद की महक़ है, फिर भी कवि का ध्यान हमेशा यह होना चाहिये कि कविता इन्द्रिय-बोध के स्तर से लिखी जाय और अंतर्वस्तु के प्रकटीकरण में ज्ञानेन्द्रियाँ भी संलग्न हो बजाय सिर्फ़ मन के।
9.
प्रस्तुत कविता में इन्द्रिय-बोध इतना प्रखर, और भाषिक संरचना इतनी सरल-तरल बन पडे हैं कि वे कविता की अंतर्वस्तु को पाठक के अंतस में गहरे धँसाकर कविता को न सिर्फ़ संप्रेषणीय बनाने में सक्षम है, अपितु प्रेम के भाव-जगत की सृष्टि में काफी हद तक सफल भी हुआ है।