इन्द्रियगम्य वस्तु का प्रयोजन इन्द्रियों से गम्य नहीं है।
2.
समझे बिना कुछ इन्द्रियगम्य हुआ, यह हम कह भी नहीं सकते।
3.
पाँच इन्द्रियगम्य है, उसमें अमूर्त नाम मात्र का भी नहीं है।
4.
इस तरह इन्द्रियगम्य वस्तुओं में भी समझने का भाग शेष रहता ही है।
5.
जो वास्तविकताएं इन्द्रियगम्य नहीं हैं-वे हमको समझने के बाद देखने को मिलता है।
6.
सामान्यतया मनुष्य की व्याख्या और क्या की जाय? उसकी विशेषता और क्या बताई जाय? इन्द्रियगम्य उसका प्रत्यक्ष स्वरूप इतनी ही तो है ।।
7.
मानो उस अलक्ष्य अगोचर अव्यपदेश्य अतीन्द्रिय ब्रह्म सत्ता की सच्चिदानन्दमयिता ही गुरु कृपा कटाक्ष से इन्द्रियगम्य, मनोगम्य, बुद्धिगम्य होकर इन्द्रिय मन बुद्धि सबको एक साथ ही अनुभूत हो रही थी ; सम्पूर्ण सूक्ष्म स्थूल शरीर आनन्द विभोर था ; बस आनन्द था, आनन्दातिरेक था और थे सम्मुख समासीन सद्गुरुदेव।