कौमारभृत्य वाक्य
उच्चारण: [ kaumaarebheritey ]
"कौमारभृत्य" का अर्थउदाहरण वाक्य
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- आज भी बाल चिकित्सा को कौमारभृत्य कहा जाता है।
- कौमारभृत्य के अंतर्गत कुमार का पोषण, रक्षण, उसकी परिचार
- कौमारभृत्य के अंतर्गत प्रसूतितंत्र, स्त्रीरोगविज्ञान तथा बालरोग विज्ञान आते थे।
- कौमारभृत्य के अंतर्गत प्रसूतितंत्र, स्त्रीरोगविज्ञान तथा बालरोग विज्ञान आते थे।
- कौमारभृत्य विषय पर स्वतंत्र आर्ष ग्रंथ केवल काश्यपसंहिता ही उपलब्ध हुआ है।
- आयुर्वेद में बाल चिकित्सा का नाम कौमारभृत्य के नाम पर ही है।
- कौमारभृत्य विषय पर स्वतंत्र आर्ष ग्रंथ केवल काश्यपसंहिता ही उपलब्ध हुआ है।
- इन समस्त कारणों से कौमारभृत्य, या कौमारतंत्र, आजकल एक विशेष विज्ञान माना जाने लगा है।
- इन समस्त कारणों से कौमारभृत्य, या कौमारतंत्र, आजकल एक विशेष विज्ञान माना जाने लगा है।
- आजीवक कौमारभृत्य] जिनके नाम पर बाल चिकित्सा को कौमारभृत्य कहा जाता है स्वयं भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में एक थे।
- आजीवक कौमारभृत्य] जिनके नाम पर बाल चिकित्सा को कौमारभृत्य कहा जाता है स्वयं भगवान बुद्ध के प्रमुख शिष्यों में एक थे।
- या कौमारभृत्य को भारतीय चिकित्सक ईसा से 600 वर्ष पूर्व आयुर्वेद के अष्टांगों में एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में मानते थे।
- बालरोग विज्ञान (Pediatrics) या कौमारभृत्य को भारतीय चिकित्सक ईसा से 600 वर्ष पूर्व आयुर्वेद के अष्टांगों में एक महत्वपूर्ण अंग के रूप में मानते थे।
- राजगुरु हेमराज शर्मा का योगदान इसलिए भी अधिक हो जाता है क़ि आज आयुर्वेद क़ी काश्यप संहिता न होती तो कौमारभृत्य नामक विभाग न होता I
- विभिन्न विषयों जैसेकायचिकित्सा, शल्य, कौमारभृत्य आदि में भी संहिताओं का ही पठन-पाठन होता है, इस-~ लिए भी उनका पृथक से विषय के रूप में अध्ययन अपेक्षित है.
- विभिन्न विषयों जैसेकायचिकित्सा, शल्य, कौमारभृत्य आदि में भी संहिताओं का ही पठन-पाठन होता है, इस-~ लिए भी उनका पृथक से विषय के रूप में अध्ययन अपेक्षित है.
- बौद्ध परम्परा के अनुसार भगवान बुद्ध के समय आजीविक कौमारभृत्य (जिन्हें पालि में “” आजीवकोकोमार '' कहते हैं) का नाम उल्लेखनीय है, जो अजातशत्रु के राजवैद्य थे।
- कौमारभृत्य के अंतर्गत कुमार का पोषण, रक्षण, उसकी परिचारिका या धात्री, दुग्ध या आहार जन्य विकार, शारीरिक विकृतियाँ, गृहजन्य बाधा एवं औपसर्गिक रोग तथा आगुंतक रोगों का विवरण एवं चिकित्सा वर्णित हैं।
- इसके आठ अंग हैं (१) शल्य (चीरफाड़), (२) शालाक्य (सलाई), (३) कायचिकित्सा (ज्वर, अतिसार आदि की चिकित्सा), (४) भूतविद्या (झाड़-फूँक), (५) कौमारभृत्य (बालचिकित्सा), (६) अगदतंत्र (बिच्छू, साँप आदि के काटने की दवा), (७) रसायन और (८) बाजीकरण । आयुर्वेद शरीर में बात, पित्त, कफ मानकर चलता है ।
- आयुर्वेद अथवा किसी भी चिकित्सा शास्त्र के अध्ययन के लिए शरीर रचना का ज्ञान नितांत आवश्यक है | चिकित्सा में निपुणता प्राप्त करने के लिए प्रथम और आवश्यक सोपान शरीर विज्ञान है | इस ज्ञान के बिना चिकित्सा, शल्य, शालाक्य, कौमारभृत्य आदि किसी भी आयुर्वेद के अंग का अध्ययन संभव नहीं | चिकित्सा के प्रमुख दो वर्ग है-
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