भँवरों के साथ वर्णसादृश्य है फिर श्लेष द्वारा रूपक में पहुँचकर जलावर्त
2.
जाते हैं क्योंकि जलावर्त का धर्म है चक्कर में डालना और हंस का स्वभाव है
3.
अब इस विवेचन के अनुसार जायसी के उपर्युक्त रूपक की समीक्षा कीजिए-यौवनरूप जल, काले केशरूपी भँवर (जलावर्त) और श्वेत केशरूपी हंस।
4.
अमरीका की राष्ट्रीय मौसम सेवा के सदस्यों का कहना है कि ठंड, वायु सघनता और नदी में पैदा हुए जलावर्त की वजह से ऐसी गोल तैरती आकृति का निर्माण हु आ.
5.
यानी स्थल का जल से बाहर की ओर आना, बहिर्विष्ट होना, प्रोजेक्ट करना पानी से बाहर आना भी जलावर्त की वजह एक छोटे से घेरे में बनता देखा जा सकता है ।
6.
काले केश का पहले तो अतिशयोक्ति में काले भँवरों के साथ वर्णसादृश्य है फिर श्लेष द्वारा रूपक में पहुँचकर जलावर्त के साथ कुछ आकृति सादृश्य (केश कुंचित या घूमे हुए होने से) है।
7.
नदी की उफनती बाढ़मे जलावर्त के ठेठ भीतर के भवरमे-घुमराते अंधेरो में-घर-गृहस्थी-बंधी-संबंधी रश्मो-रिवाज़ों और पति-पुत्रो में खूपी हुई कुल बुलाती देखी मैंने नारी! संवेदना शीलताके फेविकोलसे चिपकाये लगावो के जोड़ों को वह काट नहीं पाती है कभी भी-क्यों की वह ' आरी ' नहीं हो पाती है-संधि है यह ; नारी '
8.
इसके उपरान्त जब दूसरी पंक्ति के इस व्यंग्यार्थ पर आते हैं कि युवावस्था में मनुष्य विषयों के चक्कर में पड़ा रहता है और वृद्धावस्था में उसमें सद्विवेक करनेवाली आत्मा (हंस) का उदय होता है तब हमें सादृश्य और साधर्म्य दोनों मिल जाते हैं क्योंकि जलावर्त का धर्म है चक्कर में डालना और हंस का स्वभाव है नीर क्षीर विवेक।