उनकी अपनी जीवनियों और मुहम्मद साहब के जीवन और कथनों के बारे में उनके द्वारा दिए गए बयानों को इस्लामी क़ानून ('शरिया'), जीवन-रीति व परम्परा ('सुन्नाह') और न्याय-दर्शन ('फ़िक़्ह') के विकास में भारी महत्व दिया गया।
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उनकी अपनी जीवनियों और मुहम्मद साहब के जीवन और कथनों के बारे में उनके द्वारा दिए गए बयानों को इस्लामी क़ानून (' शरिया '), जीवन-रीति व परम्परा (' सुन्नाह ') और न्याय-दर्शन (' फ़िक़्ह ') के विकास में भारी महत्व दिया गया।