| 1. | तद्रूपता के प्रमाण रूप में हम हैं ही।
|
| 2. | तत-सान्निध्य तद्रूपता (अनुभव सम्पन्नता) के साथ है।
|
| 3. | तद्रूपता के मिटते ही चित्त स्वतः शुद्ध होने लगता है ।
|
| 4. | अणव, कर्म और माया दूर हो जाएगी, तो सभी आत्माएं इस तद्रूपता
|
| 5. | प्रणव को इस प्रकार जानने के अनन्तर तद्रूपता को प्राप्त हो जाता है।
|
| 6. | भगवद्रूपता प्राप्ति:-सारूप्यम् अर्थात् पूजा आदि द्वारा परमाभत्तिफ से तद्रूपता होना।
|
| 7. | प्रणव को इस प्रकार जानने के अनन्तर तद्रूपता को प्राप्त हो जाता है।
|
| 8. | प्रणव को इस प्रकार जानने के अनन्तर तद्रूपता को प्राप्त हो जाता है।
|
| 9. | यही कारण है कि साहित्य वर्त्तमान की तद्रूपता को स्वीकार नहीं करता ।
|
| 10. | विवेकपूर्वक शरीर से तद्रूपता मिट जाने पर संकल्प की उत्पत्ति ही नहीं होती ।
|