| 1. | (ख) सारे तन्तुजाल अर्थात घटकसमष्टि का मनोव्यापार।
|
| 2. | के तन्तुजाल में हमें अन्त: संस्कार की दूसरी श्रेणी मिलती है।
|
| 3. | कहलाते हैं और जिनसे पौधों के घटक, तन्तुजाल आदि बनते हैं।
|
| 4. | कालिकर और विरशो ने घटक तथा तन्तुजाल सम्बन्धी सिध्दान्तों को मनुष्य के एक
|
| 5. | संयोयक अवयव बतलाया और सिद्ध किया कि पौधों का सारा तन्तुजाल इन्हीं घटकों
|
| 6. | (क) तन्तुजाल के एक एक घटक की आत्मा का अलग अलग मनोव्यापार और
|
| 7. | प्रत्येक तन्तुजाल या अवयव का, जो कई समानधर्मवाले घटकों के योग से संघटित
|
| 8. | ऊपर लिखी दोनों कलाएँ या झिल्लियाँ ही आदि तन्तुजाल हैं, उन्हीं से पीछे और
|
| 9. | उन सब बहुघटक पौधों और जीवों में जिनके घटक तन्तुजाल के रूप में मिलकर
|
| 10. | जैसे, स्पंज आदि बने हों और फिर तन्तुजाल द्वारा एकीभूत अनेक घटक जीवों का
|