घोरे तुरंगम दिये हैं जो दान | अरथ बहल पालकी किये हैं कुर्बान || ७९ ||
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सारोपा गौणीलक्षणा के अन्तर्गत सादृश्य सम्बन्ध के आधार पर आरोप-~ विषयअर्थात उपमेय और आरोप्यमाण अर्थात् उपमान--दोनों ही का स्पष्टतया कथनहोता है और उसी के द्वारा लक्ष्यार्थ का बोध होता है; यथा--नैन तुरंगम अलक छवि, छरी लगी जिहि आइ.
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तुरंगम ' ' वस्तुतः एक ही है और वह है Terrier का वशंज Dawn horses जो कि उस समय अपनी अन्तिम् पीढ़ी के द्वारा रावण को अपनी सेवा दे रहा है तो हम राम अथवा रावण के स्थितिकाल को 10000 ई 0 पू 0 की एक सीमा रेखा के अन्दर रख सकते हैं।
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धूप सा तन दीप सी मैं उड़ रहा नित एक सौरभ-धूम-लेखा में बिखर तन, खो रहा निज को अथक आलोक-सांसों में पिघल मनअश्रु से गीला सृजन-पल,औ' विसर्जन पुलक-उज्ज्वल,आ रही अविराम मिट मिटस्वजन ओर समीप सी मैं!सघन घन का चल तुरंगम चक्र झंझा के बनाये,रश्मि विद्युत ले प्रलय-रथ पर भले तुम श्रान्त आये,पंथ में मृदु स्वेद-कण चुन,छांह से भर प्राण उन्मन,तम-जलधि में नेह का मोतीरचूंगी सीप सी मैं!धूप-सा तन दीप सी मैं!