यदि श्राद्ध के अवसर पर कोई योगाभ्यासी ध्यानपरायण भिक्षु न मिले तो दो ब्रह्मचारियों को भोजन कराना चाहिए।
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हे रघुकुलनन्दन, ज्ञानरूपी कवच से गुप्त शरीरवाले अतएव दुःख के सर्वथा अयोग्य भी ये ध्यानपरायण महामुनि, मन्त्रजपनिरत ऋषि, यज्ञ-याग आदि करने वाले ब्राह्मण एवं जनक आदि राजा अज्ञानियों के समान मनोवृत्ति से होने वाली पूर्वोक्त अनेक प्रकार की संसारपीड़ा का अनुभव करते हुए रहते हैं, ऐसा यदि तुम्हारा ख्याल है, तो वे कैसे सदा प्रसन्नचित्त रहते हैं? ।।