यद्यपि ऐसा नही कि आरम्भसे ही वह अनुकरणात्मक या प्रतिरूपात्मक कला के घनिष्ठ सम्पर्क में न आतीरही हो.
2.
प्रतिरूपात्मक कला (रिप्रेजेंटेशनल आर्ट) के अस्वीकार में इस सदी कीयूरोपीय कला और भारतीय कला-आदर्शो में एक ऊपरी समानता दिखती है.
3.
इन दृष्टियों के अन्तर्गत श्रीवृन्दावन तथा ब्रजमण्डल का स्वरूपोत्थान एक प्रतिरूपात्मक योजना के रूप में हैं, क्योंकि सांस्कृतिक दृष्टि से इस भूमि को महत्ता राष्ट्रीय ही नहीं, अपितु अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य है।