प्रशस्तिकार ने उसकी प्रशंसा बढ़ा चढ़ाकर की हो तब भी इसमें संदेह नहीं कि चंदेल राज्य धीरे धीरे शक्तिशाली बन रहा था।
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प्रशस्तिकार ने उसकी प्रशंसा बढ़ा चढ़ाकर की हो तब भी इसमें संदेह नहीं कि चंदेल राज्य धीरे धीरे शक्तिशाली बन रहा था।
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ऐतिहासिक सत्य तथा वैज्ञानिक शुद्धता के निमित्त सभी उपलब्ध साधनों का इस ग्रन्थ में आलोचनात्क और गम्भीर विवेचन ही नहीं किया गया है किन्तु भारत के विविधतापूर्ण इतिहास के किसी अंग-विशेष को अनावश्यक महत्व देने अथवा निन्दा करने की नीति सर्वथा बहिस्कार भी किया गया है मेरी यह दृढ़ धारणा है कि इतिहासकार के लिए इस प्रकार का पक्षपातपूर्ण व्यवहार अशोभनीय है, क्योंकि न तो वह आदर्शों का प्रचारक है और न महत्वकांक्षी राजाओं के वीर कृत्यों का प्रशस्तिकार है।