धाय माँ प्रियोक्ति है इसे किराए की कोख भी कहा जाता है आजकल.
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संशुद्धि की भावनावाली यह प्रियोक्ति भी उपदेश की शब्दावली में नहीं किंतु रंजनता की शब्दावली में होगी।
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वह चाहें तो इन्हें “ बेड-पेरेंट ” कह सकतें हैं हालाकि यह प्रियोक्ति (मंगल-भाषित, यूफमिज्म) ही कहलाएगी.
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हमारे देश में ' यूफ़िमिस्म ' यानी ' प्रियोक्ति ' की लंबी परम्परा है जैसे ' अंधे ' को ' सूरदास ' कहने की हमारी परम्परा-अनुमोदित शैली. इधर मनोवैज्ञानिक फंडों के चलते ' डिसेबल्ड ' को ' डिफ़रेंटली एबल्ड ' कहने का भी चल शुरु हुआ है.
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यह पहले ही कहा गया है कि हास का आधार प्रीति पर होता है न कि द्वेष पर, अतएव यदि किसी की प्रकृति, प्रवृत्ति, स्वभाव, आचार आदि की विकृति पर कटाक्ष भी करना हो तो वह कटुक्ति के रूप में नहीं किंतु प्रियोक्ति के रूप में होगी, उसकी तह में जलन अथवा नीचा दिखाने की भावना न होकर विशुद्ध संशुद्धि की भावना होगी।