डी. डी. कोसाम्बी ठीक ही बताते हैं कि अगरिया (लौहकर्म करने वाली जनजाति) का लौह ज्ञान जो आज हमें एक मौलिक परम्परा लगता है, वस्तुतः मौर्य साम्राज्य द्वारा विकसित किया गया था।
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गहनों का काम करने वाले, मूलतः स्वर्णाभूषण बनाने वाले स्वर्णकार (स्वर्णकार > सोनार > सुनार) मिट्टी का सामान या मूलतः मटका यानी कुम्भ बनाने वाले कुम्भकार (कुम्भकार > कुम्भार > कुम्हार) लौहकर्म करने वाले लुहार (लौहकार > लौहार > लुहार), कांस्यकर्म करने वाले कसेरे (काँस्यकार > कंसार > कसेरा) कहलाए ।
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गहनों का काम करने वाले, मूलतः स्वर्णाभूषण बनाने वाले स्वर्णकार (स्वर्णकार > सोनार > सुनार) मिट्टी का सामान या मूलतः मटका यानी कुम्भ बनाने वाले कुम्भकार (कुम्भकार > कुम्भार > कुम्हार) लौहकर्म करने वाले लुहार (लौहकार > लौहार > लुहार), कांस्यकर्म करने वाले कसेरे (काँस्यकार > कंसार > कसेरा) कहलाए ।