आज भी परिस्थितियां वैसी ही हैं, शक्ति-केंद्र भले ही बदल गया हो।
2.
पूरे जगत का शक्ति-केंद्र सूर्य सारे ब्रह्मांड में जीवन को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है।
3.
वह संसद, न्याय-तंत्र, नौकरशाही, अखबार आदि के समान समाज का एक शक्ति-केंद्र है।
4.
हमारे संविधान ने देश चलाने के जितने शक्ति-केंद्र बनाए, उनमें से किसी को भी स्वयंभू नहीं बनाया।
5.
एक अरब 20 करोड़ लोग विश्व के शक्ति केंद्र से अगर अलग रहें तो वह शक्ति-केंद्र ही क्या है?
6.
बकौल अजित कुमार-वह दौर साहित्य और संस्कृति के नए शक्ति-केंद्र के रूप में दिल्ली के उभरने और स्थापित होने का दौर था.
7.
दो सम्राटों, वरिष्ठों की तीस सदस्यीय परिषद तथा न्यायाधीशों के अलावा सरकार के चैथे शक्ति-केंद्र के रूप में एफर्स की बैंच थी.
8.
आज तक भी विभीषण का नाम जासूस, द्रोही, पंचमाँगी और देश अथवा दल से गद्दारी करनेवाले का दूसरा रूप माना जाता है, विशेषकर राम के शक्ति-केंद्र अवध के चारों ओर।
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एक तो तीसरी दुनिया के लगभग 150 राष्ट्रों को विश्व शक्ति-केंद्र के साथ भागीदारी का भाव पैदा होगा और दूसरा अमेरिका की सही नीतियों के लिए समर्थन जुटाने में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
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मेरे विचार से समस्या यह नहीं है कि कितने सत्ता-केंद्र हिंदी साहित्य की दुनिया में सक्रिय हैं या टैक्स वसूलने वाले या दान-दक्षिणा लेने वाले अपने-अपने स्वार्थ के लिए क्या-क्या कर रहे हैं, समस्या यह है कि वातावरण में यह बात फैल रही है कि बिना किसी शक्ति-केंद्र का साथ पाए या किसी साहित्यिक मठाधीश का आशीर्वाद लिए साहित्य की दुनिया में जगह बनाना असंभव है.