नियन्त्रण के बाहर होती है और एक शोकसन्तप्त व्यक्ति को इस बात की याद
2.
सीता ने उनकी ‘ शोकसन्तप्त ' ‘ चिन्ताव्याकुलितेन्द्रिय ' विवर्णवदन ' (वाल्मीकि रामायण, अयोधयाकांड, सर्ग 26) मुद्रा को देखकर भांप लिया कि कुछ भारी गड़बड़ हुई है।
3.
दुःख और सुख जीवन के अविभाज्य अंग हैं, और हमें निराशा, अपमान एवं दुःख को जीवन का अपरिहार्य अंग मानकर स्वीकार करना पड़ेगा, अन्यथा हम आगे नहीं बढ़ सकते हैं और शोकसन्तप्त होकर विनष्ट हो जायेंगे।