गंगा को पुण्य सलिला, पाप-नाशिनी, मोक्ष प्रदायिनी, सरित् श्रेष्ठा एवं महानदी कहा गया है।
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नारद जी ने कहा, “ राजाओ! कछुए की बात सुनकर मुझे बड़ा कुतूहल हुआ और मैं गंगा देवी के सामने जाकर बोला-सरित्-श्रेष्ठे गंगे! तुम धन्य हो! क्योंकि तुम तपस्वियों के आश्रमों की रक्षा करती हो, समुद्र में मिलती हो, विशालकाय श्वापदों से सुशोभित हो और अभी आश्चर्यों से विभूषित हो | ”