तुलसी कहते हैं-” सीतल जागे मनोभव मुएंहु मन वन सुभगता न परे कही, सुगन्ध सुगन्द
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तुलसी कहते हैं-” सीतल जागे मनोभव मुएंहु मन वन सुभगता न परे कही, सुगन्ध सुगन्द मारुत मदन अनल सखा सही।
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एक कोण से देखें तो लगता है मुस्करा रहे हैं बुद्ध दूसरे कोण से वे दिखते हैं कुछ विषादित विचार-मग्न तीसरे कोण में है जीवन्मुक्ति की सुभगता-एक अविचल शान्ति
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तुलसीदास ने भी समूची प्रकृति को वसंत संवेदन के प्रभाव में बताया है, “ जागे मनोभव मुएंहु मन वन सुभगता न परे कही, सीतल सुगंध सुमंद मारूत मदन अनल सखा सही।