इधर एक जो बेहयाई, व्यक्तिवाद, आत्मकेन्द्रितता आदि-आदि आए हैं,
2.
वैयक्तिक आत्मकेन्द्रितता की राह दिखाता है... इस पर भी सोचियेगा... काफ़ी कह गया आलोचनापूर्वक...क्षमा चाहूंगा... अन्यथा ना लें... यदि कहीं से भी ध्यान देने योग्य ना लगे तो कृपया इसे भुला दें...
3.
लोगों की आत्मकेन्द्रितता इस कदर बढ़ रही है कि वे संयुक्त परिवार, संस्था या राष्ट्र के व्यापक कल्याण के बारे में सोचने के बजाय अब केवल अपने एकल परिवार के कल्याण या उससे भी एक कदम आगे बढ़ कर केवल अपने व्यक्तिगत कल्याण व स्वार्थ सिद्धि के बारे में सोचते हैं।